नजरिया..!
जो सुख सहज बनने में है, वह समझदार बनने में नहीं ।
हम समय-समय पर कुछ न कुछ नया सीखते रहते है । सीखना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है । लेकिन उनमें से कुछ बातें ऐसी होती है । जिन्हें लर्न फॉर लाईफ अर्थात जीवनभर की सीख कहा जाता है । मैंने भी सीखा लर्न फॉर लाईफ ।
मैंने सीखा... कि हर बात पर प्रतिक्रिया नहीं देनी है । मैं कितनी ही कोशिश करूं कि मेरी प्रतिक्रिया सही हो लेकिन मेरी दी हुई प्रतिक्रिया सही या गलत यह बात सामने वाले के उपर निर्भर करता है । क्योंकि वह उस घटना को अपने छोर से (प्वाइंट ऑफ व्यू) से देख रहा है । वह मेरी सोच के बिल्कुल उल्टा होगा ।
मैंने सीखा... कि दुःख देने वाले इंसान से बदला लेने के बजाय उन्हें नजर-अदांज किया जाए । क्योंकि इस तरह के लोगो से बदला लेने पर दुःख मुझे ही होता है । अंत में मैंने बदला लेने कि जगह बदल जाना सीखा ।
मैंने सीखा... कि जो लोग हर वक्त नकारात्मकता फैलाते हैं, उनसे दूर रहा जाए क्योंकि मेरी सकारात्मकता का उन पर कोई असर नहीं था । लेकिन उनकी नकारात्मकता से मेरी मानसिक शांति को ठेस पहुंची ।
मैंने सीखा... अपनों को पहचानना, जो मुझसे प्यार करते हैं, उन पर मेरी किसी भी गलती का कोई असर नहीं होता । वे हमेशा प्यार ही करते है । और जो प्यार नहीं करते वे मुझमें हमेशा गलतियां ही ढूंढेंगे, उन पर मेरी किसी अच्छाई का कोई असर नहीं पड़ेगा । आखिर में मैने मुझमें गलतिया ढूंढने वाले लोगों पर अपनी एनर्जी बर्बाद न करना सीखा ।
मैंने सीखा... कि जो सुख सहज बनकर रहने में है, वह समझदार बनकर रहने में नहीं । अब अगर कोई मुझे अज्ञानी समझता है, तब भी मैं उसे समझदार बनकर दिखाने की कोशिश नहीं करता । मैंने हर स्थिति में सहज रहना सीख लिया है ।
मैंने सीखा... कि किसी का दिल दुखाकर कभी खुशी नहीं मिलती । कभी-कभी सही होते हुए भी मौन रहना फायदेमंद होता है क्योंकि मेरे शब्दों से सामने वाले का दिल दुखने पर दर्द मुझे खुद को ही होता है । अब मैंने चुप रहना भी सीख लिया है ।
मैंने सीखा... कि अपने बर्ताव को संयमित रखना है । मेरे कंट्रोल में सिर्फ मेरा बर्ताव है दूसरों का नहीं । मुझे किसी से अपने मनमाफिक बर्ताव न भी मिले, तब भी मुझे अपने बर्ताव को संयमित रखना है । मैंने अपने गलतियों को स्वीकारना सीखा । मेरे गलती स्वीकारने से बात बने या न बने, लेकिन मेरा मन असीम शांति महसूस करता है ।
मैंने सीखा... हर इंसान को उसके नजरिये के साथ छोड़ देना । मेरा कठोर प्रयास भी सामने वाले को सही मार्ग पर नहीं ला पाएगा । फिर उस दिशा में मेरी कोशिश ही बेकार होगी ।
मैंने सीखा... अपने प्रति लोगों के नजरिये को बदलने की कोशिश न करना । बल्कि कृतज्ञता प्रकट करना । छोटी-छोटी बातों पर भी कृतज्ञता प्रकट करना सामने वाले को जो खुशी देता है, उसके सामने सब कुछ फीका लगता है ।
मैंने सीखा... ईश्वर की सत्ता में पूरी आस्था और भरोसा रखना । ईश्वर कभी अन्याय नहीं करते ।
और सबसे आखिर में मैंने सीखा जेहि विधि राखे राम का मंत्र । बस मंत्र जपत-जपते सब भूल जाना ।
मैंने जानता हूँ कि जीवन मुझे अभी बहुत कुछ सिखाएगा और मुझे खुले मन से उसे सीखना और स्वीकारना भी होगा ।
* * *
0 Comments